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Gudi Padwa 2024 : गुड़ी पड़वा कब है, क्यों मनाया जाता है और कैसे मनाया जाता है? जानिए दस विशिष्ट बातें

Gudi Padwa 2024 : गुड़ी पड़वा पर लोग घर को साफ करते हैं, मुख्य द्वार पर रंगोली बनाते हैं और आम या अशोक के पत्तों से तोरण बांधते हैं।

Gudi Padwa 2024 : हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से हिंदू नव वर्ष की शुरुआत होती है। महाराष्ट्र में इसे नव-संवत्सर कहते हैं और इसे गुड़ी पड़वा कहते हैं। यह दक्षिणी भारत में ‘उगादी’ भी कहलाता है। “गुड़ी पड़वा” दो शब्दों से बना है: “गुड़ी” का अर्थ है विजय पताका, और “पड़वा” का अर्थ है प्रतिपदा तिथि। लोग चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि, यानी गुड़ी पड़वा, पर उत्साहपूर्वक गुड़ी सजाते हैं। इस खास दिन को मनाते हुए हमें संयम रखने और नई शुरुआत करने की प्रेरणा मिलती है। और घर की बुरी ऊर्जाएं दूर हो जाती हैं। चलो जानते हैं गुड़ी पड़वा का त्योहार क्यों मनाया जाता है और कैसे मनाया जाता है।

Gudi Padwa 2024 तिथि

प्रतिपदा तिथि आरंभ- 08 अप्रैल 2024 को रात 11 बजकर 50 मिनट पर।
प्रतिपदा तिथि समाप्त- 09 अप्रैल 2024 को रात 08 बजकर 30 मिनट पर।

Gudi Padwa पूजा विधि

अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, इस बार 9 अप्रैल 2024 को गुड़ी पड़वा का त्योहार है। इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले स्नान आदि करके विजय के प्रतीक के रूप में घर में एक सुंदर गुड़ी लगाकर उसका पूजन किया जाता है। ऐसा करने से घर में नकारात्मकता दूर होती है और सुख-शांति और खुशहाली आती है। कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में यह पर्व मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा का दिन स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस दिन विशिष्ट पकवान श्री खंड, पूरनपोली और खीर बनाए जाते हैं। गुड़ी पड़वा पर घर को साफ करते हैं, मुख्य द्वार पर रंगोली बनाते हैं और आम या अशोक के पत्तों से तोरण बांधते हैं। घर के सामने झंडा लगता है और एक बर्तन पर स्वस्तिक बनाकर रेशम का कपड़ा लपेट कर रखा जाता है। इस दिन सुंदरकांड, रामरक्षास्रोत, भगवती की पूजा और मंत्रों का जप किया जाता है। नीम की कोपल गुड़ के साथ खाने से आपको अच्छा स्वास्थ्य मिलता है।

गुड़ी पड़वा से जुड़ी दिलचस्प बातें

1-नव संवत्सर के राजा
09 अप्रैल 2024 से हिंदू नववर्ष विक्रम संवत 2081 की शुरूआत हो रही है। इस नव वर्ष के प्रथम दिन के स्वामी को पूरे वर्ष का स्वामी माना जाता है। हिंदू नववर्ष की शुरुआत मंगलवार से आरंभ हो रही है इस कारण से नए विक्रम संवत के स्वामी मंगलदेव होंगे।
2-सृष्टि के निर्माण का दिन
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्माजी ने गुड़ी पड़वा के दिन सृष्टि का निर्माण शुरू किया था और सतयुग की शुरुआत हुई थी। यही कारण है कि इसे युगादि तिथि या सृष्टि का प्रथम दिन भी कहते हैं। इस दिन नवरात्रि घटस्थापन, संवत्सर पूजन, ध्वजारोहण आदि कार्य किए जाते हैं।
3-वानरराज बाली पर विजय
रामायण काल में सुग्रीव ने श्री राम को बाली के अत्याचारों से अवगत कराया। तब भगवान राम ने बाली को मार डाला और स्थानीय लोगों को उसके शोषण से छुटकारा दिलाया। यह दिन चैत्र प्रतिपदा था। इसलिए इस दिन विजय पताका फहराई जाती है या गुड़ी।
4-शालिवाहन शक संवत
एक ऐतिहासिक कहानी कहती है कि शालिवाहन नामक एक कुम्हार के लड़के ने जमीन से सैनिकों की एक सेना बनाई, उस पर पानी छिड़ककर उनमें प्राण फूँक दिए, और इस सेना की मदद से दुश्मनों को हराया। इस जीत के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक संवत भी शुरू होता है।
5-हिंदू पंचांग की रचना का काल
महान भारत के गणितज्ञ और खगोलशास्त्री ने हिंदू पंचांग बनाया, जो दिन, महीने और वर्ष की गणना करता था। इस दिन उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने विक्रम संवत का शुभारंभ किया और शकों को हराया। भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था, इसलिए दिन रात्रि से बड़ा होने लगा।
6-भगवान राम लौटे थे अयोध्या
धर्मशास्त्रों के अनुसार, भगवान राम ने रावण का वध करके माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अपने राज्य अयोध्या लौटे थे, जो गुड़ी पड़वा के दिन हुआ था।
7-पहली बार छत्रपति शिवाजी ने मनाया था यह पर्व
माना जाता है कि मराठों के राजा छत्रपति शिवाजी ने मुगलों से युद्ध करने के बाद पहली बार गुड़ी पड़वा का त्योहार मनाया था। महाराष्ट्र में इस त्योहार को पहले से ही सभी लोग बहुत उत्साह से मनाते आ रहे हैं।

 

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